नई दिल्ली। सावन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाने वाली कामिका एकादशी का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। यह व्रत इस वर्ष 21 जुलाई को रखा जा रहा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन श्रद्धा और भक्ति से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने और व्रत कथा का पाठ करने से साधक को पुण्य की प्राप्ति होती है तथा जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है।
सावन का दूसरा सोमवार: शिवभक्ति की पूर्णता, व्रत और जलाभिषेक का पावन पर्व
प्रत्येक माह में दो एकादशी तिथियां आती हैं — एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में। इनमें सावन माह की कामिका एकादशी को अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। वैदिक ग्रंथों में उल्लेख है कि इस व्रत को विधिपूर्वक करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। विशेषतः, यह व्रत उन लोगों के लिए फलदायी है जो जीवन में किसी पापबोध या अपराध से मानसिक रूप से पीड़ित हैं।
पौराणिक कथा: एक पहलवान की प्रायश्चित की यात्रा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, प्राचीन काल में एक गांव में एक क्रोधी पहलवान रहता था, जिसकी आए दिन किसी न किसी से तकरार होती रहती थी। एक दिन क्रोधवश उसने एक ब्राह्मण की हत्या कर दी। इस अपराध के बाद समाज ने उसका बहिष्कार कर दिया और धार्मिक कार्यों से भी वंचित कर दिया।
अपने अपराधबोध से पीड़ित पहलवान ने जब एक साधु से प्रायश्चित का उपाय पूछा, तो साधु ने उसे सावन माह की कामिका एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। पहलवान ने विधिपूर्वक व्रत रखा, व्रत कथा का पाठ किया और भगवान विष्णु से क्षमा याचना की। रात को उसे सपने में भगवान विष्णु के दर्शन हुए, जिन्होंने उसे ब्राह्मण हत्या के पाप से मुक्त कर दिया। तभी से इस एकादशी व्रत को अत्यंत प्रभावकारी माना जाता है।
व्रत का महत्व
कामिका एकादशी व्रत न केवल आध्यात्मिक लाभ देता है, बल्कि मानसिक शांति, आत्मिक संतुलन और सामाजिक पुनर्स्वीकृति का भी प्रतीक बन गया है। इस दिन व्रत रखने वाले भक्त सूर्योदय से पहले स्नान कर व्रत का संकल्प लेते हैं, विष्णु सहस्रनाम और एकादशी कथा का पाठ करते हैं तथा फलाहार कर दिन व्यतीत करते हैं।
इस प्रकार, कामिका एकादशी केवल एक धार्मिक तिथि नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उत्थान का एक महत्वपूर्ण साधन है। श्रद्धालुओं के लिए यह एक शुभ अवसर है कि वे भगवान विष्णु की आराधना कर जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाएं।
